नटनागर का परिचय


राजा राजसिंह की रानी राजकुंवर चावड़ीजी की कोख से लदूना के राजमहलों में महाराजकुमार रतनसिंह का जन्म सोमवार, वैशाख बदी 1 सं0 1865 वि0 (11 अप्रेल, 1808 ई0) के दिन हुआ । रतनसिंह का बचपन लदूना के राजप्रासादों में व्यतीत हुआ । रतनसिंह की बाल्यकाल की अधिक बातें तो ज्ञात नहीं हैं। परन्तु यह बात प्रसिद्ध है कि विद्या अध्ययन के साथ ही जीवन का बहुत कुछ समय व्यायाम और आखेट में ही बीता । नियमित व्यायाम के कारण रतनसिंह का शरीर सुगठित और बलशाली बन गया था । शारीरिक बल के कई किस्से आज भी प्रसिद्ध हैं ।
राजा राजसिंह के योग्य निर्देशन में रतनसिंह ने उर्दू, फारसी, हिन्दी, ब्रज, संस्कृत और डिंगल भाषा का अध्ययन किया । अपने पिता व गुरु श्रूपदास से प्रेरणा प्राप्त कर रतनसिंह ”नटनागर“ उपनाम से हिन्दी, ब्रज, डिंगल, फारसी व उर्दू भाषाओं में कविता करने लगे । वि0सं0 1913 में ‘नटनागर विनोद’ की रचना की गई । रतनसिंह ने अपनी इस काव्य रचना में श्रृंगार के दोनों पक्षों संयोग और वियोग का सुन्दर चित्रण किया है । साथ ही अलंकार सौन्दर्य व भाषा माधुर्य भी देखने को मिलता है । नटनागर विनोद में अधिकतर ब्रजभाषा का उपयोग किया गया है । फिर भी कहीं-कहीं पर मालवा की प्रान्तीय भाषा की झलक भी दिखाई पड़ती है । इस रचना के साथ ही रतनसिंह ने उर्दू में एक ”दीवाने उश्शाक“ की रचना की थी, जिसकी संस्थान में अप्रकाशित प्रति है।
साहित्य प्रेम के साथ ही रतनसिंह को चित्रकला और संगीत का भी शौक था । रतनसिंह को घुड़सवारी का भी शौक था । घोड़ों के लक्षणों व गुणों पर ”अश्व विचार“ की भी रचना की थी।
महाराजकुमार रतनसिंह दादूपंथी सन्त श्रूपदास से बहुत प्रभावित थे और उनको अपना गुरु मानते थे । वह संस्कृत के बहुत अच्छे विद्वान थे । श्रूपदास और रतनसिंह के मध्य हुआ पत्र व्यवहार नटनागर विनोद में देखा जा सकता है । यह पत्र व्यवहार कविता में ही होता था । उसका संग्रह भी श्री नटनागर शोध संस्थान, सीतामऊ में संग्रहीत है । रतनसिंह कविता प्रेम व कविता लेखन से कवि जगत में काफी प्रसिद्ध थे । उनकी साहित्यिक गोष्ठी में सूर्यमल्ल, चण्डीदान, हरीराम, गुरु भाई शिवराम, श्याम राव आदि कवि सम्मिलित थे । कविता करने के साथ ही रतनसिंह को काव्य ग्रंथों को संग्रहीत करने का भी शौक था । इसके लिए कई काव्य ग्रंथों की प्रतिलिपियाँ करवाकर उनको संग्रहीत किया था । सीतामऊ की शासन व्यवस्था भी उन्ही के सुपुर्द थी । सीतामऊ राज्य के टांका संबंधी प्रकरणों को सुलझाने के लिए रतनसिंह ने ई0 सन् 1860 में ग्वालियर की यात्रा की। अंग्रेज अधिकारी ए.जी.जी. सेक्सपियर के माध्यम से ग्वालियर के महाराजा जयाजीराव से मुलाकात कर अपनी वाकपटुता से प्रसन्न कर टांके की राशि में 5000/- रुपये की छूट प्राप्त करने में सफल रहे थे । ग्वालियर से वापस लौटते हुए रतनसिंह ने गंगा स्नान किया व ब्रजभूमि की यात्रा भी की थी ।
महाराजकुमार रतनसिंह की मृत्यु अपने पिता के जीवनकाल में ही 55 वर्ष की आयु में घोड़े से गिरने के कारण मंगलवार, माघ वदी 3 सं0 1920 (26 जनवरी, 1864 ई0) की मध्यरात्रि को हो गई थी।

श्री नटनागर शोध संस्थान की स्थापना


”यदि कभी स्वतन्त्र भारत में एक ‘केन्द्रीय ऐतिहासिक संस्था’ का निर्माण हुआ तो रघुबीर संग्रह इसकी अनिवार्य इकाई होगी । इसके पहले कि यह आदर्श साकार हो, राजपूताना -मालवा विश्वविद्यालय रघुबीर लायब्रेरी का पूर्ण उपयोग किये बिना हमारे देश के बीते काल पर कोई शोध कार्य नहीं कर सकता है । “ आचार्य यदुनाथ सरकार द्वारा 1949 ई0 में देखे गये उपर्युक्त स्वप्न को साकार करने के लिए ही स्व0 डा. रघुबीरसिंह एम.ए., डी.लिट्., एल.एल.बी. ने अगस्त 14, 1974 ई0 को श्री नटनागर शोध संस्थान, सीतामऊ (मालवा-म.प्र.) की स्थापना की । उन्होंने श्री रघुबीर लायब्रेरी सीतामऊ और अपने अन्य संग्रहों को इसमें सम्मिलित कर दिया । संस्थान की स्थापना का उद्देश्य न केवल श्री रघुबीर लायब्रेरी के संग्रह की सुरक्षा करना व उसे अधिकाधिक सुसमृद्ध बनाना था, अपितु ऐतिहासिक शोध-कार्य तथा अध्ययन के लिये सीतामऊ आने वाले शोधकर्ताओं और इतिहासकारों के लिए पूर्व में सुलभ सुविधाओं को स्थायी, सुदृढ़ और चिर विकसित होते रहने वाले आधार पर सुव्यवस्थित करना भी था ।
श्री नटनागर शोध संस्थान, सीतामऊ का पंजीकरण मध्यप्रदेश रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1973 (सं. 44, वर्ष 1973) के अन्तर्गत सं. 4081 पर दिनांक जनवरी 16, 1975 ई0 को हुआ । मध्यप्रदेश राज्य शासन ने संस्थान को एक विशेष उल्लेखनीय संस्था के रूप में मान्यता प्रदान की और 1975-76 ई0 के वर्ष से लगातार अधिकाधिक वार्षिक पोषण अनुदान देता जा रहा है ।

रघुबीर लायब्रेरी


”निरन्तर समृद्ध हो रहे एक ऐसे ग्रन्थागार के बारे में विश्व को बहुत कम जानकारी है, जिसके कारण कम से कम ऐतिहासिक अध्ययन के क्षेत्र में तो अवश्य ही मालवा प्रदेश का गौरवपूर्ण भविष्य सम्भव हो गया है । सीतामऊ में रघुबीर लायब्रेरी ही यह ग्रन्थागार है।“
श्री रघुबीर लायब्रेरी संस्थान की प्रमुख इकाई है । इस ग्रन्थागार की स्थापना सन् 1936 ई0 के लगभग हुई थी और इन पिछले 56 से भी अधिक वर्षों से इसका निरन्तर विकास होता जा रहा है । प्रारम्भिक बीस वर्षों में इस संबंधी आचार्य यदुनाथ सरकार के निर्देशों और सुझावों का पूर्णतया पालन किया गया । मध्यकालीन भारतीय इतिहास पर, विशेषतया ईसा की 17 वीं और 18 वीं शताब्दियों कालीन इतिहास पर कार्य कर रहे शोधकर्ताओं के लिये इस ग्रंथागार की उपयोगिता तथा उसके विशिष्ट महत्त्व को भारतीय इतिहासकारों में सर्वमान्य वरिष्ठ आचार्य यदुनाथ सरकार के साथ ही प्रायः सब ही सुप्रसिद्ध इतिहासकारों ने पूर्णतया स्वीकार किया है । इस ग्रन्थागार की गरिमा तथा उसके विशेष महत्त्व के बारे में आचार्य यदुनाथ सरकार और कुछ अन्य सर्वमान्य प्रसिद्ध इतिहासकारों के विचारों के कुछ उद्धरण आगे दिये जा रहे हैं ।
संप्रति श्री रघुबीर ग्रन्थागार में लगभग 40,000 से अधिक प्रकाशित पुस्तकें हैं । उनमें अधिकतर इतिहास विषयक हिन्दी, मराठी, फारसी और अंग्रेजी के दुर्लभ ग्रंथ हैं । ग्रन्थागार में 6,000 पाण्डुलिपियाँ, जो विभिन्न भाषाओं में यथा फारसी उर्दू, संस्कृत, अंग्रेजी, राजस्थानी, मराठी में है । इन दुर्लभ ग्रंथों में इतिहास, कविता, चिकित्सा, विज्ञान, धर्म, राजनीति व ज्योतिष संबंधी विभिन्न विषयों की जानकारी मिलती है ।
इन पुस्तकों व पाण्डुलिपियों के अतिरिक्त ग्रन्थागार में ब्रिटिश म्युजियम, लन्दन; इण्डिया ऑफिस लायब्रेरी, लन्दन; राॅयल एशियाटिक सोसायटी, लन्दन; बाॅडलियन लायब्रेरी, ऑक्सफोर्ड द बिब्लियोथिका नाजनेल, पेरिस और यूरोप के अन्य उल्लेखनीय संग्रहों में सुरक्षित पाण्डुलिपियों के लगभग 1,00,000 पत्रों की माइक्रोफिल्म प्रतियाँ भी यहाँ सुलभ हैं । पूना के पेशवा दफ्तर संग्रह में संगृहीत फारसी अभिलेखों की लगभग 30,000 फोटो प्रतिलिपियाँ और माइक्रोफिल्में भी यहाँ संगृहीत हैं। माइक्रोफिल्मों को पढ़ने के संयत्र ‘लायब्रेरी’ रिकार्डक’ को 1938 ई0 में इग्लैण्ड से सर्वप्रथम भारत में आयात करने का गौरव इसी ग्रन्थागार को है । इधर एक और नया माइक्रोफिल्म-रीडर भी क्रय कर लिया है ।
पुस्तकालय में नियमित रूप से आने वाली सुप्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में राॅयल एशियाटिक सोयायटी, लन्दन; एशियाटिक सोसायटी, कलकत्ता; नागरी प्रचारिणी पत्रिका, वाराणसी और भारत इतिहास संशोधक-मण्डल, पूना, द इस्लामिक कल्चर, हैदराबाद, बंगाल पास्ट एण्ड प्रेजेण्ट, द इण्डियन हिस्टोरिकल, रिव्यू, द इकानामीक एण्ड सोशियल हिस्ट्री रिव्यू आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं ।
सन् 1921 ई0 से लेकर अब तक की अधिकांश हिन्दी और अंग्रेजी की प्रमुख पत्रिकाओं की प्रतियाँ इस पुस्तकालय में उपलब्ध हैं । इण्डियन हिस्ट्री कांग्रेस, इण्डियन हिस्टोरिकल रिकार्डस कमीशन और अन्य ऐसे ही अनेक प्रान्तीय संगठनों के सम्मेलनों की कार्यवाहियों के पूरे संग्रह इस ग्रन्थागार में उपलब्ध हैं।

फारसी हस्तलिखित ग्रंथ, कागज पत्र और माइक्रो फिल्में:

दिल्ली सल्तनत, मुगलकालीन भारत और उत्तर मुगलकालीन भारतीय इतिहास के लिये हस्तलिखित फारसी ग्रंथ और कागज-पत्र इस ग्रन्थागार की एक प्रमुख आधार सामग्री है । इस ग्रन्थागार में 14 वीं शताब्दी से 18 वीं शताब्दी के अन्त तक के भारतीय इतिहास की आधार सामग्री के सैकड़ों हस्तलिखित ग्रंथ इनकी माइक्रो फिल्में और कागज पत्र संगृहीत हैं । फारसी हस्तलिखित ग्रन्थों, कागज-पत्रों के अतिरिक्त ब्रिटिश म्युजियम लन्दन, इण्डिया ऑफिस लायब्रेरी, लन्दन, बाॅडलियन लायब्रेरी ऑक्सफोर्ड, द बिब्लियोथिका नाजनेल, पेरिस और यूरोप के अन्य उल्लेखनीय संग्रहों में सुरक्षित पाण्डुलिपियों के लगभग 1,00,000 पत्रों की माइक्रो फिल्म प्रतियाँ संगृहीत हैं । पूना के पेशवा दफ्तर में संगृहीत फारसी लेखों की लगभग 30,000 फोटो प्रतिलिपियाँ और माइक्रो फिल्में भी यहाँ संगृहीत हैं ।

सिंध का इतिहास -सिंध के इतिहास की जानकारी देने वाली भी कुछ पाण्डुलिपियाँ यहाँ संगृहीत हैं, जिनमें ‘बेगलारनामा’ और ‘तरखाननामा’ उल्लेखनीय हैं ।

दिल्ली सल्तनत -12 वीं शताब्दी में मुस्लिम आक्रमणों के साथ ही 13 वीं शताब्दी के प्रारम्भ में दिल्ली पर मुस्लिम राज्य की स्थापना हो गई । सल्तनत कालीन भारतीय इतिहास से संबंधित भी कुछ पाण्डुलिपियाँ यहाँ सुलभ हैं, जिनमें अब्दुला माहरु कृत ‘मुंशात-इ-माहरू’ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं । इसमें 14 वीं शताब्दी के प्रशासकीय और सामाजिक जीवन की जानकारी मिलती हैं ।

मालवा और गुजरात सल्तनत -मालवा और गुजरात सल्तनतों के इतिहासों से संबंधित यथासाध्य प्रायः सभी फारसी इतिहास ग्रंथों की पाण्डुलिपियाँ यहाँ उपलब्ध हैं । यहाँ संगृहीत पाण्डुलिपियों से 1391 ई0 से 1554 ई0 तथा बाद तक की जानकारी मिलती है । देश और विदेश में उपलब्ध सभी आधार ग्रंथों की पाण्डुलिपियाँ तथा माइक्रों फिल्में आदि यहाँ संगृहीत कर ली गई हैं । ‘इतिहास के विस्मृत अध्यायों को पुनर्जीवित करने की आकांक्षा रखने वाले विद्यार्थी मालवा और समकालीन गुजरात के इतिहास की यहाँ संगृहीत दुर्लभ पाण्डुलिपियों के लिए रघुबीर लायब्रेरी (संस्थान) जाने को बाध्य होंगे । (प्रो. निरोद भूषण राय, एसेज प्रजेण्टेड टू सर युदनाथ सरकार, पृ0 281)’

मुगल और उत्तर मुगलकालीन भारत -आचार्य यदुनाथ सरकार के अनुसार ”मालवा, गुजरात और राजपूताना के क्षेत्रीय राजवंशों के अतिरिक्त दिल्ली बादशाहों के इतिहासों के संग्रह में रघुबीर लायब्रेरी (संस्थान) ने चरम सीमा तक विशिष्टता प्राप्त कर ली है ।“ मुगल बादशाह हूमायूँ, अकबर, जहांगीर और शाहजहाँ से संबंधित अनेकों माइक्रो फिल्में और पाण्डुलिपियाँ यहाँ सुलभ हैं । परन्तु मुगल बादशाह औरंगजेब (1658 से 1707 ई0) और उत्तर मुगलकालीन भारतीय इतिहास (1707 से 1761 ई0) से संबंधित फारसी की पाण्डुलिपियाँ, उनकी माइक्रो फिल्मों और फोटो प्रतिलिपियों तथा अखबारात (समाचार, सूचना पत्रों) सनदों, कागज पत्रों की प्रतिलिपियों आदि का तो अमूल्य संग्रह है । सर यदुनाथ सरकार के अनुसार ‘मध्यकालीन भारतीय इतिहास के आधार सामग्री संग्रह की पूर्णता के लिए रघुबीर लायब्रेरी विश्व में अद्वितीय है । इस ग्रन्थागार के एक विशिष्ट और बहुमूल्य विभाग में 1659 ई0 से 1830 ई0 तक के अखबारात अथवा हस्तलिखित फारसी समाचार सूचना-पत्र और डिंगल तथा फारसी में लिखे जयपुर राज्य के पत्र-संग्रह व पेशवा शासन के प्रशासनिक अभिलेख हैं, जो इन विषयों पर शोध करने वाले विश्व के प्रत्येक भाग के छात्र को यहाँ आकर्षित किए बिना नहीं रहेगा ।

मराठा ब्रिटिश कालीन - मराठा-ब्रिटिश कालीन भारतीय इतिहास (1761 से 1818 ई0 तक) से संबंधित फारसी हस्तलिखित ग्रन्थों, अखबारात और कागज-पत्रों आदि की पाण्डुलिपियाँ, माइक्रो फिल्मों और फोटो प्रतियों का भी यहाँ अद्वितीय भण्डार है । सिंधिया, भौंसला, होल्कर आदि विभिन्न मराठा राज्यों के इतिहास के लिए भी यहाँ संगृहीत फारसी सामग्री अति महत्वपूर्ण हैं, भारत में अन्यत्र कहीं भी सुलभ नहीं हैं ।

राजस्थानी तथा हिन्दी के हस्तलिखित ग्रंथ और कागज-पत्र:

पूर्व आधुनिक भारत के निर्माण में राजपूत-राज्यों का विशेष योगदान रहा है । अतः राजस्थान के राजपूत राज्यों के इतिहास के अध्ययन के बिना मध्यकालीन भारतीय इतिहास अपूर्ण ही रह जावेगा । पूर्व आधुनिक भारत के इतिहास के सही परीक्षण और लेखन के लिए राजस्थानी और हिन्दी में लिखित हस्तलिखित ग्रंथों और कागज-पत्रों का अध्ययन सर्वथा अनिवार्य है । रघुबीर लायब्रेरी में 14 वीं शताब्दी से लेकर 19 वीं शताब्दी के राजस्थान मालवा मुख्यतः मेवाड़, मारवाड़ (जोधपुर), आम्बेर(जयपुर), बीकानेर, डूंगरपुर, रामपुरा और सीतामऊ राज्यों के इतिहासों की जानकारी पर प्रकाश डालने वाले सैकड़ों हस्तलिखित ग्रंथ, हस्तलिखित ग्रंथों की माइक्रों फिल्में, हजारों कागज-पत्र, सिक्के और ताम्रपत्र आदि यहाँ संगृहीत हैं । संशोधकों की जानकारी के लिए ऐसे कुछ महत्वपूर्ण हस्तलिखित-ग्रथों का उल्लेख यहाँ किया जा रहा हैं ।

जोधपुर राज्य की ख्यात - इसमें मारवाड़ के राठौड़ शासकों का प्रारम्भ से महाराजा मानसिंह (1843 ई0) तक का विस्तृत प्रामाणिक विवरण है ।

मूंदियाड़ री ख्यात - (जिल्द प्रथम) इसमें मारवाड़ के राव सीहा से महाराजा विजयसिंह के शासनकाल (1817 वि0) तक का विवरण है ।

मूंदियाड़ री ख्यात - (जिल्द दूसरी) इसमें महाराजा विजयसिंह के शासन के अन्तिम वर्षों से लेकर महाराजा मानसिंह के शासनकाल (1843 ई0 तक) का विवरण हैं ।

उदैभाण चांपावत री ख्यात - इसमें मारवाड़ के राठौड़ शासकों का महाराजा जसवन्तसिंह (1678 ई0) तक विवरण और राठौड़ वंश की विभिन्न खांपों की तब तक की पूरी वंशावलियाँ हैं। इस ख्यात की मूल प्रति सन् 1679 ई0 में जोधपुर नगर के परकोटे की ताक में बंद कर दी गई थी, जो 19 वीं शताब्दी के अन्तिम दशकों में परकोटे को तोड़ते समय निकली थी ।

जालोर परगना री विगत (दो बहियाँ) - इसमें जोधपुर के महाराजा जसवन्तसिंह कालीन मारवाड़ के जालोर परगने की ऐतिहासिक, आर्थिक और प्रशासनिक जानकारी तथा साथ ही वहाँ के गाँवों आदि की भी पूरी समकालीन विगत है ।

बीकानेर रे राठोड़ा री ख्यात, सिण्डायच दयालदास कृत - बीकानेर राजघराने की सुविख्यात वृहत् ख्यात, जिसमें राठौड़ों के प्रारम्भिक इतिहास के बाद बीकानेर राज्य की स्थापना से लेकर सन् 1851 ई0 तक उक्त राज्य का विस्तृत इतिहास है ।

शाहपुरा राज्य की ख्यात (चार भाग) - इसमें शाहपुरा राज्य का प्रारम्भ से 1869 ई0 तक का विवरण है । साथ ही इसमें तत्कालीन फरमानों, सनदों, परवानों और पत्रों की भी प्रतिलिपियाँ हैं ।

निर्देश -कुछ दूरी देंवे

डूंगरपुर राज्य की ख्यात -इसमें डूंगरपुर राज्य का प्रारम्भ से 1906 ई0 तक का विवरण है ।

रामपुरा के चन्द्रावतों की ख्यात - इसमें रामपुरा के चन्द्रावत (सिसोदिया) शासकों का प्रारम्भ से 1792 ई0 तक का विवरण है ।

सीतामऊ राजघराने का ख्यात-संग्रह - सीतामऊ राज्य घराने की सब ही प्राप्य ख्यातें यहाँ संगृहीत हैं । इस राजघराने का सन् 1912 ई0 तक का विवरण उनमें मिलता है ।

फुटकर पीढ़ियाँ -इसमें मेवाड़ के राणा मोकल से महाराणा राजसिंह और जैसलमेर के भाटियों, रामपुरा के चन्द्रावतों और चैहानों तथा पंवारों की शाखाओं का प्रारम्भ से 17 वीं शताब्दी के मध्य तक का संक्षिप्त विवरण हैं ।

जयपुर रेकार्डस् - इसमें सन् 1639 से 1888 ई0 तक के जयपुर राज्य के कागज पत्रों की प्रतिलिपियाँ छः जिल्दों में संगृहीत हैं ।

पृथ्वीराज रासो - चंदबरदाई कृत इस ग्रंथ के मध्यम संस्करण की सन् 1636 ई0 की जो प्राचीनतम प्रति राॅयल एशियाटिक सोसायटी लन्दन के संग्रह में सुरक्षित है, उसकी माइक्रोफिल्म यहाँ सुलभ है ।

खुमाण रासो, दलपत कृत - मेवाड़ के इतिहास विषयक इस बहुचर्चित सुविख्यात इतिहास ग्रंथ की श्री भण्डारकर ओरियण्टल रिसर्च इंस्टीट्यूट, पूना की टंकित, राॅयल एशियाटिक सोसायटी लन्दन में संगृहीत प्रति की माइक्रोफिल्म तथा उसके फोटो प्रिण्ट यहाँ सुलभ हैं । इसमें बापा रावल से लेकर सन् 1662 ई0 तक का मेवाड़ राज्य का इतिहास है ।

अप्रकाशित मराठी कागज-पत्र और विभिन्न संग्रह -

अपने शोध ग्रंथ ”मालवा इन ट्रांजिशन“ के संदर्भ में मण्डलोई दफ्तर (इन्दौर) की प्रमाणिक प्रतिलिपियों की प्राप्ति हेतु सन् 1933 ई0 में डा. रघुबीरसिंह ने श्री कृष्णविट्ठल आठले से सम्पर्क साधा था । श्री कृष्णविट्ठल आठले का देहान्त हो जाने के बाद सन् 1945 ई0 में समूचा ”आठले दफ्तर“ ही प्राप्त कर लिया गया । इसमें मूल कागज पत्र बहुत नहीं हैं, परन्तु स्वयं श्री कृष्णविट्ठल आठले द्वारा देवनागरी लिपि में की गई सारी प्रतिलिपियाँ ही हैं, जिनके मूल पत्रों आदि के बारे में अब कोई जानकारी उपलब्ध नहीं हैं ।

आठले संग्रह के कुछ उल्लेखनीय आधार सामग्री संग्रह -

हिंगणे-दफ्तर - इसमें 1776 ई0 से 1835 ई0 तक के 504 पत्रों की प्रतिलिपियाँ संगृहीत हैं, जिनमें उत्तरी भारत से संबंधित विवरण है ।

गोरे दफ्तर - इसमें 1787 से 1805 ई0 तक के 204 पत्र संगृहीत हैं ।

मण्डलोई दफ्तर - इसमें 1662 से 1816 ई0 तक के 284 पत्र संकलित हैं । मालवा में मराठों की गतिविधियों संबंधी उल्लेख हैं ।

धार दफ्तर -इसमें 1721 से 1776 ई0 तक बाजीराव प्रथम, बालाजी राव, माधवराव आदि पेशवाओं के पत्र संगृहीत हैं ।

रिंगणगांवां येथील भाउसाहिबांची अस्सल बखर -पानीपत के युद्ध के बारे में यह बखर नारो सखाराम ने हस्तिनापुर में लिखी थी । उसकी प्रतिलिपि रघुनाथ राजाराम ने सेंवढ़ा (दतिया) में मार्च 1, 1761 ई0 को लिखकर तैयार कर दी थी, उसी प्रति से की गई प्रतिलिपि यहाँ संगृहीत है ।

गुलगुले दफ्तर - संस्थान में संगृहीत इस दफ्तर में 1733 से 1822 ई0 तक के लगभग 6,000 कागज पत्र हैं । गोविन्द सखाराम सरदेसाई के अनुसार इस संग्रह की मुख्य विशेषता यह है कि ”मराठा काल पर इसके पूर्व जितनी भी सामग्री उपलब्ध हुई थी, वह सब पूना और दक्षिण भारत की घटनाओं से संबंधित हैं, अथवा अपूर्ण है । परन्तु कोटा (गुलगुले) दफ्तर में मराठों के उत्तरी भारत में प्रारम्भिक अभियान से लेकर अंग्रेजी राज्य स्थापित होने (1733 से 1822 ई0) तक की लगभग सभी घटनाओं की जानकारी मिलती हैं ।

माण्डू दफ्तर के मराठी (मोड़ी) कागज-पत्र -पंडित विश्वनाथ शर्मा के सौजन्य से प्राप्त माण्डू के भूतपूर्व जमींदार और कानूनगो भगवती प्रसाद के संग्रह के लगभग 322 मराठी कागज-पत्रों की जेराक्स प्रतियाँ । धार के पंवार राज्य के आर्थिक इतिहास के लिए उपयोगी है। इन ग्रंथों के अतिरिक्त अनेक ग्रन्थों, बहियों व रजिस्टरों आदि की जेराक्स प्रतियाँ भी संस्थान में संगृहीत की गई हैं ।

रामपुरा संबंधी सामग्री - ईसा की 18वीं सदी के प्रारम्भ तक रामपुरा चंद्रावत की राजधानी और इसके बाद मराठा आधिपत्य काल में परगना मुख्यालय रहा है । उस क्षेत्र संबंधी अति महत्त्वपूर्ण सामग्री, रामपुरा की सनद बही, रामपुरा अभिलेख (मोड़ी व फारसी), रामपुरा के बरनिसी रजिस्टरों की जेराक्स प्रतियाँ संस्थान में संगृहीत हैं ।

देवास संग्रह - देवास छोटी पाति से संस्थान को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक हस्तलिखित अभिलेख (मराठी-मोड़ी) व देवास द्वारा कुलकर्णी से खरीदे हुए अठारवीं शताब्दी के मूल कागज- पत्र प्राप्त हुए हैं । पंवार राज्य के प्रशासनिक, आर्थिक व सामाजिक पहलुओं पर ये अभिलेख प्रकाश डालते हैं । ये दस अभिलेख इस प्रकार के हैं- दफाते पत्रें, यादि, तेरीज-पत्रक, तालेबन्द मोकासा, हिशेब सरदेशमुखी, हिबेश अजमास बाबती सरदेशमुखी, झाड़ा तथा दान-पत्र । देवास छोटी पांति राज्य द्वारा नियुक्त शोधकर्ता श्री श्रीवास्तव द्वारा संगृहीत पंवार घराने के पूर्वजों आदि के इतिहास संबंधी सामग्री संशोधकों के लिये लाभदायक सिद्ध होगी । हस्तलिखित अभिलेखों के साथ ही संस्थान को प्रकाशित पुस्तकों का भी एक महत्त्वपूर्ण संग्रह वहाँ से प्राप्त हुआ है।

लेले संग्रह - धार के पंवार राज्य से संबंधित ऐतिहासिक सामग्री की कुल 25 फाइलें केन्द्रीय संग्रहालय, इन्दौर से प्राप्त हुई जिनकी जेराक्स प्रतियाँ संस्थान में संगृहीत की गई है, जो धार के ऐतिहासिक इतिवृत के लिये उपयोगी सिद्ध होती हैं ।
छपे हुए महत्वपूर्ण दुर्लभ आधार ग्रंथ आदि पहले यह लिखा जा चुका है कि श्री रघुबीर लायब्रेरी में हिन्दी, फारसी, मराठी और अंग्रेजी के सैकड़ों महत्त्वपूर्ण छपे हुए ग्रंथ हैं । जो आज सर्वथा दुर्लभ ही नहीं है, परन्तु कई एक की इनी-गिनी प्रतियाँ ही अन्यत्र हों । सूर्यमल मिश्रण कृत वंश भास्कर, श्यामलदास कृत ”वीर-विनोद“ गोरीशंकर हीराचन्द ओझा कृत सारे इतिहास ग्रंथ, मुंशी देवीप्रसाद कृत आकार में छोटी परन्तु प्रामाणिक पोथियाँ आदि यहाँ सुलभ हैं ।
एशियाटिक सोसायटी, कलकत्ता द्वारा प्रकाशित सारे फारसी इतिहास ग्रंथ, जो अब सर्वथा अप्राप्य हो गए हैं और जिनके पुनर्मुद्रण की आज तो कोई सम्भावना नहीं दिखाई पड़ती हैं, उनकी प्रतियाँ श्री रघुबीर लायब्रेरी में प्राप्त हैं । इसी प्रकार नवलकिशोर प्रेस, लखनऊ द्वारा प्रकाशित कई दुष्प्राप्य फारसी इतिहास ग्रंथ भी यहाँ सुलभ हैं ।
ग्रंथागार में मराठी के प्रकाशित इतिहास विषयक ग्रंथों का एक बड़ा संग्रह है । इन ग्रंथों में मराठ्यांची राजकारणे (द.ब. पारसनीस), ऐतिहासिक लेख संग्रह (वासुदेव वामन शास्त्री), पेशवे दफ्तररातून निवडलेले कागद (गोविन्द सखाराम सरदेसाई), मराठ्यांची इतिहासांची साधने, होल्कर शाहीच्या इतिहासांची साधने, पंवार घराण्याचा इतिहासांची ग्रंथ तथा साधने भारत इतिहास संशोधक मण्डल की त्रैमासिक पत्रिका, ऐतिहासिक संकीर्ण साहित्य तथा सलेक्शन फ्राम पेशवा दफ्तर की जिल्दे आदि का महत्त्वपूर्ण संग्रह है जो इतिहास के शोधार्थियों के लिए उपयोगी हैं ।

रघुबीर लायब्रेरी में संगृहीत अंग्रेजी ग्रंथ- इन ग्रंथों में भी अनेकों अति दुर्लभ ग्रंथ हैं, जिनमें विशेष उल्लेखनीय हैं ”एशियाटिक एनुअल रजिस्टर“ (1799-1811 ई0) एशियाटिक जरनल एण्ड मन्थली रजिस्टर (72 जिल्दों का पूरा सेट, 1816-1846 ई0) फिलपर्ट कृत ईस्ट इण्डिया मिलिटरी कलेण्डर (3 जिल्दें, 1823-26 ई0) डाड्सवेल और माइल्स कृत एल्फाबेटिक लिस्ट ऑफ द ईस्ट इण्डिया कम्पनीज मेडिकल ऑफिसर्स (1835 ई0) ”बंगाल रजिस्टर, सिविल एण्ड मिलिटरी“ (1787 ई0) बंगाल कलेण्डर एण्ड रजिस्टर (1792 ई0), ईस्ट इण्डिया रजिस्टर“ (1805 ई0, 1827 ई, 1828 ई0) एशियाटिक्स, दोनों भाग (1803 ई0), प्रिंसेप कृत अमीर खां (1829 ई0) और लन्दन में सन् 1781 ई0 प्रकाशित एक अज्ञात लेखक कृत हिस्ट्री ऑफ दी फर्स्ट मराठा वार। सर यदुनाथ सरकार के अनुसार ”भारत की किसी भी सार्वजनिक लायब्रेरी में ये सब या इनमें से आधी पुस्तकें भी कदाचित् ही सुलभ हों।“

शोध सामग्री संकलन -

श्री नटनागर शोध-संस्थान की स्थापना के पश्चात् महाराजकुमार डा. रघुबीरसिंह डी.लिट्. ने अपने दीर्घकालीन अनुभव और सम्पर्क सूत्रों के माध्यम से संस्थान में प्राथमिक महत्त्व की शोध सामग्री संकलन का कार्य योजनाबद्ध रूप से प्रारम्भ किया । उनके सतत् प्रयासों के फलस्वरूप पिछले वर्षों में देश के अनेक प्रतिष्ठित घरानों के संग्रह और विभिन्न व्यक्तियों से प्राथमिक महत्त्व के ग्रन्थादि (मूल, प्रतिलिपि अथवा जेराक्स आदि के रूप में) को संस्थान में संगृहीत किया जिसमें से प्रमुख संग्रहों व ग्रंथों का यहाँ संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है।

फारसी इतिहास ग्रंथ और कागज-पत्र (हस्तलिखित, जेराक्स व माइक्रोफिल्म)

औरंगजेब कालीन निशान: शाहजादा आजमशाह द्वारा मदद-ए-माश के लिए प्रदत्त शाह बीबी, गुलाम मुहम्मद और करीमुन्निसा को परगना देपालपुर सरकार उज्जैन, सूबा मालवा में दी गई जमीन संबंधी दो निशान । श्री राम सेवक गर्ग, इन्दौर के सौजन्य से प्राप्त ।

मलहाते मकान, दलपतराय कृत -प्रस्तुत ग्रंथ की रचना 1850 ई0 के लगभग हुई थी। प्रथम भाग में अकबर से मुहम्मदशाह तक की कथाएँ और द्वितीय भाग में विविध जानकारी दी गई है । इस ग्रंथ की माइक्रो फिल्म और फोटो प्रिण्ट संस्थान में उपलब्ध हैं । (ब्रिटिश म्यूजियम, क्र0 ओरियन्टल 1828)

तारीख-इ-मुहम्मदी, - मुहम्मद बिहामद खानी कृत - प्रस्तुत ग्रंथ की फोटो स्टेट प्रति प्रो0 अख्तर हुसैन निजामी से प्राप्त की गई । इसमें इस्लाम की स्थापना से लेकर ईसा की 15 वीं सदी के मध्य तक मुस्लिम राज्यों का इतिहास है, जिसमें दिल्ली सल्तनत और कालपी के मालिकजादा वंश का विस्तृत इतिहास है । (ब्रिटिश म्यूजियम क्र0 ओरियन्टल 137) ।

तारीख-इ-सलातीन-इ-गुजरात, मौलाना अब्दुल हुसैन मुबर्रिख कृत -प्रस्तुत ग्रंथ के प्राप्य प्रथम भाग की प्रतिलिपि । मूल प्रति कुतुबखाना आरिफ हिकमत वे, मदीना, सऊदीअरब (क्र0 121) में संगृहीत प्रति की अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़ में प्राप्य प्रतिलिपि से यह प्रतिलिपि करवाकर प्राप्त की गई । प्रस्तुत खंड में गुजरात के सुल्तान महमूद बेगड़ा का विस्तृत विवरण ।

जहाँदारनामा, नुरूलदीन बिन बुरहान अलदीन फारूख कृत - बहादुरशाह की मृत्यु के बाद जहाँदारशाह का अपने भाइयों के साथ संघर्ष, उसके संक्षिप्त शासन काल और मृत्यु का विवरण है । (इण्डिया आफिस लायब्रेरी, लन्दन, क्र0 3988 की फोटो कॉपी) ।

नजात-उल्-रशीद, अब्दुल कादिर बदांयूनी कृतसूफीमत के सिद्धान्तों तथा संगठन संबंधी विवरण के साथ यत्र-तत्र सम्मिलित रोचक ऐतिहासिक कहानियों और विरोधाभासपूर्ण वाद-विवादों का संग्रह । (इण्डिया ऑफिस लायब्रेरी, लन्दन क्र0 2559 की जेराक्स प्रति) ।

तुहफतुल-मजालिस, इब्न अलबीन हसन सुल्तान मुहम्मद (सुल्तान मुहम्मद बिन ताज अलदीन) कृत -मुहम्मद और इमाम के अलौकिक चमत्कारों का उल्लेख हैं । (इण्डिया ऑफिस लायब्रेरी, लन्दन क्र0 977 की जेराक्स प्रति) ।

तारीख-इ-शाह शूजाई, मुहम्मद मासूम बिन हसन बिन सालेह कृतशाहजहाँ के द्वितीय पुत्र मुहम्मद शाह शुजा का जीवन वृत । (इण्डिया ऑफिस लायब्रेरी, लन्दन क्र0 340 की जेराक्स प्रति) ।

लुब्उल् तवारीख-इ-हिन्द, राय बिन्द्रावन कृत -शहाबुद्दीन गौरी से औरंगजेब के शासनकाल के 33 वें वर्ष तक का विवरण । (इण्डिया ऑफिस लायब्रेरी, लन्दन क्र0 3050 की जेराक्स प्रति) ।

चुरू-संग्रह -श्री गोविन्द अग्रवाल, चुरू (राजस्थान), से प्राप्त कुल 332 फारसी और अंग्रेजी के कागज पत्रों (1825 से 1855 ई0) की प्रतिलिपियाँ और जेराक्स प्रतियाँ । उन्नीसवीं शताब्दी में उत्तर भारत के व्यापार, व्यापारिक मार्ग, आयात-निर्यात और हुण्डियों आदि पर महत्वपूर्ण प्रकाश डालते हैं ।

मण्डलोई दफ्तर -इन्दौर के श्री निरंजन जमींदार के मण्डलोई-दफ्तर में संगृहीत 92 फारसी कागज-पत्रों की जेराक्स प्रतियाँ । पत्रों से औरंगजेब, बहादुरशाह, फर्रूखसियर और मुहम्मदशाह के शासनकालीन मालवा की सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक गतिविधियों पर महत्वपूर्ण प्रकाश पड़ता है ।

कपड़द्वारा संग्रह -भूतपूर्व जयपुर राज्य के सिटी-पेलेस म्यूजियम जयपुर के कपड़द्वारा संग्रह में लगभग 1600 कागज-पत्र संगृहीत हैं । उनमें से मुगल बादशाह औरंगजेब से मुहम्मदशाह कालीन कुल 15 (फारसी, हिन्दी) फरमानों, परवानों तथा खरीतों की प्रतिलिपियाँ उपलब्ध हैं, जो स्व0 काजी करामतुल्लाह के सौजन्य से प्राप्त हुई थी ।

भिनाय और मसूदा संग्रह -भिनाय और मसूदा (अजमेर) ठिकानों के 10 फारसी कागज पत्रों की प्रतिलिपियाँ, जो स्व0 काजी करामतुल्लाह के सौजन्य से प्राप्त हुई थी ।

माण्डू दफ्तर - माण्डू के भूतपूर्व कानूनगो के वर्तमान वंशज श्री भगवती प्रसाद के संग्रह में सुरक्षित फारसी, मराठी और हिन्दी कागज पत्रों की प्रतिलिपियाँ, औरंगजेब, बहादुरशाह और मुहम्मदशाह तथा मराठा शासनकालीन ये कागज-पत्र पं0 विश्वनाथ शर्मा, माण्डू के सौजन्य से प्राप्त हुए थे ।

संस्कृत, हिन्दी-राजस्थानी के विशिष्ट हस्तलिखित ग्रंथ, कागज-पत्र तथा प्रतिलिपियाँ आदि

मान प्रकाश -राय मुरारीदास कृत काव्य ग्रंथ में राजा मानसिंह कछवाहा आम्बेर, की दिग्विजयों का विवरण हैं । इसमें बंगाल व बिहार पर आक्रमण हेतु मानसिंह के नेतृत्व में भेजी गई शाही सेना का प्रमाणिक विवरण मिलता है । इस प्रकार अकबरकालीन इतिहास के लिए यह एक प्रामाणिक आधार ग्रंथ है । इस ग्रंथ की माइक्रोफिल्म और फोटो प्रिन्ट उपलब्ध है ।

शत्रुशल्य चरितम् -पंडितराज विश्वनाथ कवि कृत । बून्दी के महारावल शत्रुशाल हाड़ा का जीवन वृत । अत्यन्त उपयोगी है । बूंदी निवासी मोड़सिंह राव ”दिव्य“ के सौजन्य से 1979 ई0 में प्राप्त ।

राठौड़ा री ख्यात (राजस्थानी) -इसमें जोधपुर के राठौड़ शासकों का प्रारम्भ से मानसिंह तक का विवरण है । वणसूर महादान के संग्रह का ग्रंथ डा. सीताराम लालस से सन् 1976 ई0 में प्राप्त ।

अजीत चरित्र (राजस्थानी; माइक्रोफिल्म) -प्रस्तुत काव्य ग्रंथ में मारवाड़ के शासक गजसिंह का संक्षिप्त और अजीतसिंह का विस्तृत विवरण प्रारम्भ से 1707 ई0 तक का दिया गया है ।

मूंदियाड़ री ख्यात (राजस्थानी, माइक्रोफिल्म) -प्रारम्भ से राजा जसवन्तसिंह तक के राठौड़ शासकों का विवरण है ।

ताजीम इ-सरदार जोधपुर (राजस्थानी) -जोधपुर के ताजीमी जागीरदारों का विवरण।

जैसलमेर की ख्यात (राजस्थानी) -जैसलमेर के भाटियों का इतिहास ।

कहावत राजस्थानी हिन्दी -प्रस्तुत ग्रंथ में रामदास कछवाह (अकबरकालीन) का विस्तृत विवरण और पातालपोता की हकीकत है ।

रायसल-जस-सरोज -सीकर के राव राजा माधोसिंह के आदेश से कवि नन्ददान कृत इस काव्य ग्रंथ में राव बाला से माधोसिंह तक का सीकर का ऐतिहासिक विवरण हैं । सौभाग्यसिंह शेखावत के सौजन्य से प्राप्त ।

गुरां नारायणदास री ख्यात (राजस्थानी, अपूर्ण) -रणमलोत, जेतावत और करमसोत राठौड़ों की वंशावलियाँ हैं । रचनाकाल 1731 ई0 के लगभग प्रतिलिपि सौभाग्यसिंह शेखावत, चैपासनी के सौजन्य से प्राप्त ।

जयपुर के जागीरदारान ताजीमी व खास चैकियों का नक्षा (राजस्थानी, हिन्दी)-जयपुर राज्य के विभिन्न जागीरदारों की आय, उनकी ताजीम आदि का विवरण दिया गया है । प्रतिलिपि सौभाग्यसिंह शेखावत के सौजन्य से प्राप्त ।

तिलोकचन्द री बही (राजस्थानी) -राव जोधा, महाराजा जसवन्तसिंह, महाराजा अजीतसिंह और अभयसिंह का संक्षिप्त विवरण है । महाराजा विजयसिंह जोधपुर के समकालीन रचना, विजयसिंह कालीन जोधपुर का विस्तृत इतिहास व दुर्गों का विवरण । ठाकुर केसरीसिंह खींवसर से प्राप्त प्रतिलिपि ।

करोली के यादवों की वंशावली -करोली के शासकों का इतिहास । महाराजकुमार ब्रजेन्द्रसिंह, करोली से प्राप्त (प्रतिलिपि) ।

महाराजा प्रतापसिंह कृत भृर्तहरि शतक की टीका आदि -श्री आवड़दानजी कुंपडावास से प्राप्त इस गुटके में भृतहरि शतक (नीति व वैराग्य) की टीका के अतिरिक्त कविराजा बांकीदास कृत सींह छतीसी, सूर छतीसी, धवल पचीसी आदि की प्रतिलिपियाँ की गई है ।

वाणी ग्रंथ - इस ग्रंथ में सन्त दादूदयाल और सन्त कबीरदास की ”वाणियों“ का संग्रह है। धर्म साहित्य तथा रोगों के अध्ययन की दृष्टि से ग्रंथ उपयोगी है ।

बीदासर री ख्यात -ठाकुर बहादुरसिंह, बीदासर कृत । भू0पू0 बीकानेर राज्य के बीदासर ठिकाने के बीदावत राठौड़ों का प्रारम्भ से 1902 ई0 तक का इतिहास । राव बीदाजी संस्थान, बीकानेर में संगृहीत प्रति की जेराक्स प्रति ।

विजय विलास राजस्थानी काव्य -इस काव्य में मारवाड़ के शासक महाराजा अभयसिंह का अहमदाबाद अभियान, रामसिंह और बखतसिंह का आपसी संघर्ष और महाराजा विजयसिंह के शासनकाल के प्रारम्भिक चार वर्षों का विवरण दिया गया है । ठाकुर केशरीसिंह, खींवसर से प्राप्त प्रतिलिपि ।

शत्रुसाल रासो - डूंगरसी बागड़ी कृत । राव शत्रुसाल का जीवन वृत 1872 वि0 की प्रति की खेजड़िया से प्राप्त जेराक्स प्रति ।

सोरमघाट के गंगागुरु से प्राप्त दो महत्वपूर्ण बहियाँ - सनद बही, नामावली बही, प्राप्त हुई जिनकी जेराक्स प्रतियाँ संस्थान में संगृहीत है । इन बहियों में सोरमघाट के गंगागुरु को विभिन्न शासकों से प्राप्त सनदों, दान पत्रों की नकलों के साथ ही वंशावलियाँ दी गई है । जिससे तत्कालीन सामाजिक व धार्मिक जीवन व विचारों पर प्रकाश पड़ता है ।
उदयपुर राज्य संबंधी सामग्री में प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान की उदयपुर शाखा से ”राज्याभिषेक पद्धति और राज्य पट्टाभिषेक पद्धति, नामक दो ग्रंथ और महाराणा राजसिंह की पट्टा बही की जेराक्स प्रति यहाँ संगृहीत की गई है । अन्य ग्रंथों में बलवद विलास, तवारीख राज बलरामपुर, तवारीख उज्जैन याकूतनामा, आदि महत्वपूर्ण ग्रंथों की जेराक्स प्रतियाँ भी संस्थान में संगृहीत की गई है।

श्री केशवदास अभिलेखागार


अक्तूबर, 1976 ई0 में भूतपूर्व सीतामऊ राज्य के अभिलेखागर को यथावत प्राप्त कर संस्थान ने इसकी स्थापना की ।
प्रारम्भिक काल की कुछ फारसी सनदों और मराठा आधिपत्यकाल के कुछ अभिलेखों को छोड़ते हुए, इस अभिलेखागार का मूल अभिलेख-संग्रह ईसा की उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य से प्रारम्भ होकर जून 30, 1948 ई0 तक का है, जब सीतामऊ राज्य का संयुक्त मध्य भारत राज्य में विलय हुआ । यों भूतपूर्व सीतामऊ राज्य का यह अभिलेखागार संस्थान को पूरा का पूरा यथावत प्राप्त हो गया है । इसमें ब्रिटिश सत्ता के अधीन मालवा प्रान्त के एक सर्वाधिकार प्राप्त छोटे राज्य की शासकीय परम्पराओं, प्रशासनिक व्यवस्था तथा आर्थिक परिस्थितियों से संबंधित यथासम्भव पूरी जानकारी इस अभिलेखागार में उपलब्ध है । 1857 ई0 के महान विप्लव के समय इन्दौर में स्थित सीतामऊ राज्य के वकील मिर्जा वजीर बेग के समकालीन सैकड़ों पत्र भी इस अभिलेखागार में उपलब्ध हैं । जिनमें इन्दौर और आस-पास के क्षेत्रों की घटनाओं का उस प्रत्यक्षदर्शी के निष्पक्ष विवरण और अनेक समकालीन घटनाओं के महत्त्वपूर्ण उल्लेख मिलते हैं ।
यहाँ हजारों मूल अभिलेखों के 412 बस्ते, लगभग 3000 बहियाँ और 2500 पुराने रजिस्टर हैं । भूतपूर्व सीतामऊ राज्य के "इंगलिश ऑफिस" (अंग्रेजी पत्र-व्यवहार के कार्यालय) की 450 फाइलों में हजारों महत्त्वपूर्ण पत्र और उनके उत्तर (मूल और सत्य प्रतिलिपियाँ) उपलब्ध हैं, जिनके द्वारा सीतामऊ राज्य का पिछले 50 वर्षों में अनेकानेक स्थानों से अंग्रेजी में हुए पत्राचार संबंधी जानकारी मिलती है । सीतामऊ राज्य के शासकों को प्रेषित किये गये खरीते आदि, अनेक गोपनीय पत्र, टांका रसीदें और ऐसी ही विशेष महत्त्वपूर्ण सामग्री यहाँ इस अभिलेखागार में बहुतायत से उपलब्ध है । यह सम्पूर्ण सामग्री विशेषतया राज्य के राजनैतिक, प्रशासनिक, सामाजिक और आर्थिक इतिहास की पुनर्रचना में अत्यधिक लाभदायक और उपयोगी है ।
इस संग्रह में भारत सरकार के गजट, कई भारतीय राज्यों की अनेकों वार्षिक प्रशासनिक रिपोर्ट्स और गजट, 1920 ई0 के बाद के काल की कई पुरानी पत्रिकाएँ और भारतीय राज्यों के गजेटियर आदि लगभग 1150 मुद्रित पुस्तकें विभिन्न भारतीय राज्यों के 300 गजट सुलभ हैं ।
होल्कर राज्य की एडमिनिस्ट्रेशन रिपोर्ट (1894 से 1945 ई0) पुलिस एडमिनिस्ट्रेशन रिपोर्ट (1905 से 1941 ई0) बजट एडमिनिस्ट्रेशन (1910 से 1918 ई0) लेण्ड रेवेन्यू रिकार्ड्स (1924 से 1938 ई0) आदि प्रकाशित रिपोर्टे उपलब्ध हैं ।
भूतपूर्व ग्वालियर राज्य के प्रशासनिक,आर्थिक और सामाजिक इतिहास से संबंधित “दरबार पालिसी“ (1924 से 1925 ई0) की जिल्दे, एडमिनिस्ट्रेशन रिपोर्ट्स (1923 से 1946 ई0) जयाजी प्रताप (सप्ताहिक पत्र) के अंक (1939 से 1943 ई0) आदि भी उपलब्ध हैं ।
ईसा की 17 वीं तथा उसके बाद की शताब्दियों में घटित घटनाओं से संबंधित मूल पत्रों अथवा उनकी सत्य प्रतिलिपियों को भी संगृहीत करने का भरसक प्रयास किया जा रहा है । जिससे इस क्षेत्र से संबंधित जानकारी हेतु यह अभिलेखागार विशेष रूप से अवश्य ही एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय अभिलेख संग्रहालय बन जावेगा ।

रामपुरा से प्राप्त सामग्री

मन्दसौर जिला अन्तर्गत तहसील मुख्यालय रामपुरा पूर्व में चन्द्रावत शासकों और होल्करों का आधिपत्य स्थापित हो जाने के बाद होल्करों के स्थानीय शासन का केन्द्र रहा था ।
रामपुरा टप्पा कार्यालय में सुरक्षित होल्करों के समय का रामपुरा का सारा अभिलेखीय रेकार्ड फरवरी, 1983 ई0 में संस्थान को प्राप्त हुआ । इसमें कुल 1251 बस्ते हैं । इनमें भूराजस्व, प्रशासनिक व्यवस्था जनसाधारण की सामाजिक, आर्थिक दशा और व्यापार व्यवसाय, न्याय व्यवस्था आदि विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालने वाली विपुल सामग्री हिन्दी, अंग्रेजी, मराठी (मोड़ी) में उपलब्ध हैं । होल्कर कालीन रामपुरा महाल के लगभग सब ही गांवों का मीसल बंदोबस्त इस संग्रह का महत्त्वपूर्ण अंग है जिससे उस क्षेत्र की सम्पूर्ण जानकारी सुलभ होती है । इसी तरह से इन अभिलेखों में भूराजस्व वसूली, पटवारियों के रोजनामचे, कोषालय के दैनिक नगदी पत्र, चुकारा रजिस्टर, अनाज गोदामों का हिसाब किताब, लाभ हानि रजिस्टर, आबकारी से प्राप्त दैनिक आय रजिस्टर, भूमि विवाद संबंधी आदि प्रमुख हैं। साथ ही देवस्थानों, संबंधी रजिस्टर, शंखोद्वार के मेले संबंधी अभिलेख भी तत्कालीन आर्थिक, सामाजिक व धार्मिक स्थिति पर प्रकाश डालते हैं। छपी पुस्तकों में होल्कर स्टेट के गजट सन् 1882 ई0 के बाद के सब ही रिपोर्ट आदि अति महत्त्वपूर्ण सामग्री उपलब्ध है । मोड़ी लिपि में महत्त्वपूर्ण विपुल सामग्री इस संग्रह में सुलभ है । इस सम्पूर्ण संग्रह के कारण होल्करकालीन इस क्षेत्र के इतिहास की जानकारी सुलभ हो गई है।

कानोड़ संग्रह

भूतपूर्व उदयपुर राज्य के कानोड़ ठिकाने का पुरालेखीय संग्रह सन् 1983 ई0 में संस्थान को प्राप्त हुआ है। इसमें कानोड़ ठिकाने की आय-व्यय, भूमि प्रबन्ध राजस्व संबंधी महत्त्पूर्ण विवरण है । इस संग्रह से 19 वीं सदी के मेवाड़ राज्य की राजस्व व्यवस्था और आर्थिक स्थिति पर प्रकाश पड़ता है । संग्रह की बहियों की सूची तैयार की जा रही है ।

श्री राजसिंह संग्रहालय


मूल योजनानुसार संस्थान की तीसरी इकाई के रूप में श्री राजसिंह संग्रहालय की स्थापना के लिए डा. रघुबीरसिंह ने लदूना स्थित गढ़ संस्थान को भेंट स्वरूप प्रदान कर दिया है। यहाँ पर ”राज-निवास“ महल में इस संग्रहालय को व्यवस्थित किया जावेगा । इसमें इस क्षेत्र की कलाकृतियों के साथ ही भित्ती चित्रों और मनोहारी दृश्य से इसको दर्शनीय बनाया जायेगा । कलाकृतियों के साथ ही यहाँ प्राचीन सिक्कों, ताम्रपत्रों और दुर्लभ वस्तुओं के प्रदर्शन की भी योजना है । राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली द्वारा श्री राजसिंह संग्रहालय के विकास हेतु आर्थिक अनुदान दिया जिसमें संग्रहालय में संगृहीत करने के लिए मन्दसौर शहर से प्राप्त भित्ती चित्रों, मन्दसौर जिले के पुरातात्विक महत्त्व के स्थलों, शैल चित्रों के रंगीन और श्वेत-श्याम छायाचित्रों का संकलन किया गया है । साथ ही संग्रहालय हेतु कैमरा, ट्रेक लाइट्स और पुस्तकें भी क्रय की गई है ।

रिस्थल शिलालेख

ओलिकर राजवंश संबंधी रिस्थल शिलालेख सं0 572 वि0 (515-16 ई0) रिस्थल ग्राम से 1983 ई0 में खुदाई करते समय प्राप्त हुआ । इस शिलालेख से ओलिकर वंश के राजा प्रकाशधर्मन द्वारा तोरमाण हूण को परास्त करना, उसके द्वारा एक शिव मन्दिर, धर्मशाला व तालाब निर्माण आदि कार्यों पर प्रकाश पड़ता हैं ।
इसके अतिरिक्त सीतामऊ और लदूना कस्बे के 58 शिलालेखों की छापें ली गयी और उन शिलालेखों को सम्पादित कर प्रकाशित किये । ये शिलालेख सीतामऊ राज्य की प्रशासनिक, धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों का ब्यौरा प्रस्तुत करते हैं ।

ताम्रपत्र

ऐतिहासिक आधार सामग्री में ताम्रपत्र और छाया चित्रों को भी संगृहीत किया गया है । आठ पत्रों का विवरण निम्नानुसार है -


ताम्रपत्र देने वाला

प्राप्तकर्ता

तिथि

महाराजा उदेभाण कविराय करमचन्द मंगलवार दि0 चैत्र सुदि 3, 1720 वि0 (मार्च 31, 1663 ई0)
कुंवर घणराम चारण ईसरदास जेठ वदि 1, 1732 वि0 (शुक्रवार, अप्रेल 30, 1675 ई0)
महाराजा कन्हींराम महियारिया, छतरदास काती सुदि 2, 1769 वि0 (नवम्बर10, 1706 ई0
महाराव भीमसिंह महियारिया, छतरदास काती सुदि 2, 1769 वि0 (अक्तू0 20, 1712 ई0)
महाराज कुंवार महियारिया आणदराम काती सुदि 11, 1770 वि0(अक्तूबर)
अमरसिंह व राजकुमार 18, 1713 ई0)
महाराजा अभयसिंह (जोधपुर) दधवाड़िया मुकुंद केसोदासोत द्वितीय आसाढ़ सुदि 5, 1781 वि0 (जुलाई 5, 1725 ई0)
महाराव मुकंदसिंह ईसरदास आसोज सुदि 14, 1731 वि0
महाराजा सीवसिंहजी खवास देआराम आसोज वदि 13, 1800 वि0