महाराजा श्री कृष्णसिंहजी राठौर का जन्म 18 नवम्बर, 1934 ई0 को हुआ था । आप महाराजकुमार डा0 रघुबीरसिंहजी के ज्येष्ठ पुत्र थे आपकी माता का नाम
मोहनकुमारी था ।
कृष्णसिंह जी राठौर की प्रारंभिक से लेकर हाईस्कूल तक की शिक्षा सीतामऊ में ही हुई थी। आपने हाईस्कूल की परीक्षा श्रीराम विद्यालय, सीतामऊ से 1949 ई0
में शिक्षा मण्डल अजमेर के अन्तर्गत पास की । इण्टरमीडिएट 1951 ई0 में डेली कालेज, इन्दौर से म.प्र. शिक्षा मण्डल भोपाल के तहत उत्तीर्ण की ।
बी.ए. अगारा विश्वविद्यालय, आगरा के अन्तर्गत 1953 ई0 में सेण्ट जोंस कालेज, आगरा से उत्तीर्ण की । एम.ए. इतिहास विषय में सेण्ट जोंस कालेज,
आगरा से ही 1955 ई0 में उत्तीर्ण की । 1958 ई0 में दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली से एल.एल.बी. की । 1959 ई0 में दिल्ली विश्वविद्यालय से ही सर्टिफिकेट
ऑफ प्रोफिशएन्सी इन ला की डिग्री प्राप्त की। 1959 ई0 में ही आपका चयन भारतीय पुलिस सेवा के लिये हो चुका था तदनन्तर 30 अक्तूबर, 1959 ई0 में
आपने अपना पदभार ग्रहण कर लिया था । तत्पश्चात सहायक अधीक्षक पुलिस के प्रशिक्षण हेतु उसी वर्ष अक्तूबर, 1959 से अक्तूबर 1960 ई0 तक आप आबू
में रहे तथा नवम्बर 1960 ई0 से नवम्बर 1961 ई0 तक रीवा में प्रशिक्षण प्राप्त किया । उपरोक्त प्रशिक्षण प्राप्त करने के पश्चात आपकी नियुक्ति एस.ए.एफ.
इन्दौर में प्रथम बटालियन के सहायक कमांडेण्ट पद पर हुई। इस पद पर आप दिसम्बर 1961-जून 1962 ई0 तक रहे । उसके पश्चात् जून 1962 से जून 1963
ई0 तक आप अलीराजपुर में सब डिवीजन ऑफिसर पुलिस के पद पर रहे । जून 1963 से जून 1964 ई0 तक सी.एस.डब्ल्यू.टी. इन्दौर के डिप्टी कमाण्डेण्ट रहे ।
जून 1964 ई0 से जनवरी 1965 ई0 तक एस.ए.एफ. इन्दौर की प्रथम बटालियन के कमाण्डेण्ट रहे । जनवरी से जून 1965 ई0 तक नेशनल पुलिस अकादमी,
आबू में ‘एडवान्स्ड कोर्स‘ करने के बाद जुलाई 1965 ई0 में आपकी नियुक्ति शिवपुरी में अधीक्षक पुलिस के पद पर हुई । इस पद पर आप अप्रेल 1967 ई0 तक
रहे थे । जुलाई 1967 ई0 से अक्तूबर 1968 ई0 तक आप आय.बी., नई दिल्ली में सहायक निदेशक के पद पर रहे । तदनन्तर राष्ट्रीय पुलिस अकादमी आबू में
सहायक निदेशक (एड्रजुटेण्ट) स्थानान्तरित हुए, अक्तूबर 1968 से जनवरी 1973 ई0 आप उसी पद पर रहे थे । तदनन्तर जनवरी 1973 से जून 1973 ई0 तक
झाबुआ में अधीक्षक पुलिस के पद पर रहे । जून 1973 से जनवरी 1974 ई0 तक एस.ए.एफ. (15 बटेलियन) के कमांडेण्ट रहे । उसके पश्चात् बेसिक ट्रेनिंग सेण्टर
सीमा सुरक्षा बल एकेडमी टेकनपुर के कमांडेण्ट नियुक्त हुए जो मार्च 1977 ई0 तक रहे । मार्च 1977 ई0 से दिसम्बर 1977 ई0 तक आप डिप्टी इन्स्पेक्टर जनरल
के पद पर बी.एस.एफ. अगरतला (त्रिपुरा) में नियुक्त रहे । वहाँ से आपका स्थानान्तरण डी.आय.जी. कमांडेण्ट सिग्नल ट्रेनिंग स्कूल बी.एस.एफ. हेड क्वार्टर,
नई दिल्ली में हुआ । वहाँ जनवरी से अप्रेल 1978 ई0 के बीच रहे । तदनन्तर मई 1978 से दिसम्बर 1978 ई0 तक डिप्टी कमांडेण्ट (डी.आय.जी.) बी.एस.एफ.
एकेडमी टेकनपुर में पदस्थ रहे । अक्तूबर 1979 से अप्रेल 1983 ई0 तक टेकनपुर में ही टीयर स्मोक यूनिट (अश्रुगैस इकाई) के जनरल मैनेजर रहे ।
इसी दौरान जनवरी से अप्रेल 1982 ई0 तक बी.एस.एफ. एकेडमी टेकनपुर के डायरेक्टर (आफिसियेटिंग) का प्रभार भी आपने संभला था । मई 1983 से जनवरी
1986 ई0 तक आप आर्म्ड पुलिस ट्रेनिंग कालेज (ए.पी.टी.सी.) इन्दौर के डिप्टी इन्स्पेक्टर जनरल के पद पर नियुक्त हुए । तत्पश्चात् जनवरी 1986 से अक्तूबर 1988
ई0 तक बी.एस.एफ. जोधपुर के इन्स्पेक्टर जनरल के पद पर रहे । इस पद पर गुजरात एवं राजस्थान दोनों प्रान्तों की पाकिस्तान से लगी सीमा पर कार्यभार
संभाला । तदनन्तर वहाँ से उनका स्थानान्तरण ए.पी.टी.सी. इन्दौर मे हुआ वहाँ वह 1988 से अप्रेल 1991 ई0 तक इसी पद पर बने रहे । अप्रेल 1991 ई0 से
1992 ई0 तक एडिशनल डायरेक्टर लोकायुक्त (एस.पी.ई.) तथा जनवरी से मई 1992 तक एडिशनल डायरेक्टर जनरल (ट्रेनिंग) पद पर पुलिस हेडक्वार्टर भोपाल
में पदस्थ रहे थे । मई 10, 1992 ई0 में आप मध्यप्रदेश के पुलिस महानिदेशक (डी.जी.पी.) पद पर नियुक्त हुए । इसी पद पर रहते हुए 30 नवम्बर 1992
ई0 को आप सेवा निवृत्त हो गये थे ।
श्री कृष्णसिंह राठौर साहब की उपलब्धियाँ, कोर्सेस एवं प्रशिक्षण
विरासत में मिली विचारधारा के तहत अपने आपको शिक्षा को समर्पित करते हुए महाराजा कृष्णसिंह राठौर साहब ने पुलिस सेवा में रहते हुए भी अपनी सेवा से
संबंधित तथा अपने कार्य से हटकर अनेक कोर्स एवं प्रशिक्षण प्राप्त किये थे ।
इसके तहत आपने आय.पी.एस. प्रक्षिक्षण 1959-60 ई0 में सी.पी.टी.सी. आबू से प्राप्त किया था । एम.पी.पी.सी. सागर से उन्होंने 1961 ई0 में अश्रुगैस कोर्स
किया था । 1962 ई0 में प्लाटून शास्त्र कोर्स इन्फेन्ट्री स्कूल मऊ से किया था । 1963 ई0 में प्रशिक्षण विधि का प्रशिक्षण सैनिक शिक्षण केन्द्र पंचमढ़ी से प्राप्त किया
था । 1965 ई0 में उन्होंने एन.पी.ए. आबू से एडवान्सड कोर्स किया था । 1967 ई0 में आय0बी0 ट्रेनिंग सेण्टर में ‘बेसिक इन्टेलिजेन्स‘ कोर्स नई दिल्ली से किया
था । तदनन्तर 1978 ई0 में आय.सी.एफ.एस. नई दिल्ली से रिसर्च मेथडोलाजी का प्रशिक्षण प्राप्त किया था । 1980 ई0 में आय.आय.पी.ए. नई दिल्ली से प्रबंध
(पब्लिक अंडरटेकिंग) का कोर्स किया था, 1987 ई0 में एन.पी.ए. हैदराबाद से ‘उच्च परस्पर संबंध‘ का प्रशिक्षण प्राप्त किया । इण्डियन इन्स्टीट्यूट ऑफ पब्लिक
एडमिनिस्ट्रेशन (आई.आई.पी.ए.) का प्रशिक्षण 1989 ई0 में ए.एस.सी.आय. हैदराबाद से प्राप्त किया । टेक्नोलोजी के उपयोग का प्रशिक्षण राठौर सा0 ने 1990
ई0 में डी.सी.पी.सी. नई दिल्ली से प्राप्त किया था ।
इन सभी प्रशिक्षणों के अतिरिक्त उसी दौरान उन्होंने 1977 तथा 1979 ई0 के मध्य भारतीय घुड़सवारी संघ नई दिल्ली द्वारा आयोजित अश्वारोही कोर्स तथा 1978 ई0
और 1981 ई0 में उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के जज और कोच क्लीनिक्स में प्रशिक्षण प्राप्त किया था ।
श्री के0एस0 राठौर सा0 की गतिविधियाँ अपने पद से संबंधित ही नहीं अपितु अपने वंश की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने अनेक उपलब्धियाँ हांसिल की थी ।
वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे अपनी उपलब्धियों की उन्होंने एक लम्बी शृंखला तैयार की थी । वे उपलब्धियाँ निम्न हैं
श्री कृष्णसिंह जी राठौर द्वारा 1963 ई0 में अस्त्र-शस्त्र का एक केन्द्रीय विद्यालय स्थापित किया गया था ।
1988-1991 ई0 तक यूथ होस्टल एसोशियेसन भारत की इन्दौर शाखा के आप सभापति रहे ।
विश्व वन्य जीवन फण्ड के आप आजीवन सदस्य रहे ।
भारतीय लोक प्रशासन संस्थान के भी आप आजीवन सदस्य रहे ।
जोधपुर तथा जैसलमेर में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय रेगिस्तान के प्रसिद्ध त्यौहार में विशेष
रुचि लेकर उसे प्रोत्साहित किया तथा सीमा सुरक्षा बल के विख्यात टेट्टू शो तथा
बी.ओ.पी. ओर्केस्ट्रा लेकर सम्मिलित हुए। इसी दौरान आपने बी.एस.एफ. का
विश्वविख्यात एवं "गिनेज बुक ऑफ रिकार्ड्स" में वर्णित "केमल माऊन्टेड ब्रास
बेण्ड" का निर्माण किया।
1986 ई0 में भारत-पाक सीमा पर केमल सफारी का संगठन किया तथा 1987
ई0 में राजस्थान, गुजरात और पाकिस्तान सीमा पर ऊँटों की रिले दौड़ करवायी ।
मार्च, 1992 ई0 में भोपाल में राष्ट्रीय एवं अन्तराष्ट्रीय अश्वारोही प्रतियोगिताओं का
आयोजन किया ।
मई, 1991 ई0 में इन्टेक ; (INTACH) के क्षेत्रीय कनवेनर रहे ।
भारतीय रेडक्रास सोसायटी के आप आजीवन सदस्य रहे ।
अगस्त, 1991 ई0 से श्री नटनागर शोध संस्थान, सीतामऊ के अध्यक्ष
एवं निदेशक रहे ।
1991 ई0 में भारतीय "शो जम्पिंग टीम" के कोच होकर टीम तथा
व्यक्तिगत प्रतियोगिताओं में टोकियो (जापान) में दो रजत पदक प्राप्त करवाये ।
1996 ई0 में भारतीय ”ड्रेसाज“ टीम के सदस्य तथा कोच रहकर बंगकोक
(थाईलेण्ड) में चौथा स्थान प्राप्त किया ।
रायल एशियाटिक सोसायटी, लंदन के भी आप सदस्य थे ।
1970-1985 ई0 के मध्य अखिल भारतीय पुलिस अश्वारोही प्रतियोगिताओं के
आयोजन किये ।
राष्ट्रीय पुलिस, मध्यप्रदेश तथा सीमा सुरक्षा बल की अश्वारोही टीमें तैयार करके
उन्हें प्रशिक्षित किया जो आगे जाकर देश की श्रेष्ठतम टीमें रहीं ।
नवम्बर, 1975 ई0 में बी.एस.एफ. की टीम अन्तर्राष्ट्रीय टेट्टू शो मस्कत (ओमान)
में आप ही के नेतृत्व में ले जायी गयी
आप अन्तराष्ट्रीय अश्वारोही पेनल के जज एवं कोच भी रहे ।
1973 ई0 से 1998 ई0 तक आप भारतीय अश्वारोही संगठन के कार्यपालन कमेटी
के सदस्य रहे तथा साथ ही पांच बार इसके उपाध्यक्ष भी रहे । साथ ही साथ दो बार (3-3 वर्ष के लिए) आप इसकी चयन समिति के अध्यक्ष भी रहे । इस संगठन
के आप आजीवन सदस्य रहे ।
1977 ई0 में आपने डी.आय.जी. का कार्य सफलतापूर्वक बी.एस.एफ. त्रिपुरा में
भारत- बांग्लादेश सीमा पर किया ।
979 से 1983 ई0 तक टेकनपुर के अश्रुगैस संगठन के मुख्य प्रबंधक के रूप में
अपने निरीक्षण में इतना समृद्ध किया कि इससे प्रतिवर्ष 120 प्रतिशत उत्पादन बढ़ गया ।
1983-85 ई0 के दौरान इन्दौर में सशस्त्र पुलिस कॉलेज की स्थापना कर उसे
सुदृढ़ रूप प्रदान किया।
जनवरी, 1986-अक्तूबर, 1988 ई0तक महानिरीक्षक पुलिस बी.एस.एफ.
के पद पर रहते हुए आपने राजस्थान एवं गुजरात दोनों प्रान्तों का कार्यभार संभाला । इस दौरान इन प्रान्तों की सीमा पर प्रत्येक क्षेत्र जैसे- आपरेशन इन्टेलीजेंस,
खेलकूद, शूटिंग, सांस्कृतिक गतिविधियाँ, वेलफेअर, विभिन्न निर्माण कार्य, हाउसिंग, नई बटालियन रेजिंग सभी कार्य उन्नति के शिखर पर रहे ।
श्री के.एस. राठौर साहब ने न केवल भारत अपितु विदेशों में भी अपने देश का गौरव बढ़ाने के लिये अनेक विदेश यात्राएं की तथा अनेक उपलब्धियाँ हांसिल की थीं ।
उनके द्वारा विभिन्न उद्देश्यों से की गयीं विदेश यात्राएं निम्न थीं - 1964 ई0 में उन्होंने यूरोप, मिश्र, तथा बेरून की यात्राएं की थी । ये यात्राएं उन्होंने अवकाश काल के
दौरान की थीं । 1972 ई0 ओब्जर्वर के रूप में म्यूनिख ओलम्पिक, आयरलेण्ड, जर्मनी, आस्ट्रिया (विएना) की यात्राएं की थीं । बी.एस.एफ. की घुड़सवारी टीम तथा
बेण्ड टीम के साथ अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शन टेटू शो में भाग लेने के लिए 1975 ई0 में ओमान की यात्रा की थी । श्री के.एस. राठौर साहब ने न केवल भारत अपितु विदेशों
में भी अपने देश का गौरव बढ़ाने के लिये अनेक विदेश यात्राएं की तथा अनेक उपलब्धियाँ हांसिल की थीं ।
उनके द्वारा विभिन्न उद्देश्यों से की गयीं विदेश यात्राएं निम्न थीं
1964 ई0 में उन्होंने यूरोप, मिश्र, तथा बेरून की यात्राएं की गयी थी । ये यात्राएं उन्होंने अवकाश काल के दौरान की थीं ।
1972 ई0 ओब्जर्वर के रूप में म्यूनिख ओलम्पिक, आयरलेण्ड, जर्मनी, आस्ट्रिया (विएना) की यात्राएं की थीं । बी.एस.एफ. की घुड़सवारी टीम तथा बेण्ड
टीम के साथ अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शन टेटू शो में भाग लेने के लिए 1975 ई0 में ओमान की यात्रा की थी। 1986 ई0 में इग्लैण्ड फ्रांस स्विटजरलेण्ड आदि देशों की
यात्रा अध्ययन टूर के रूप में की थी । 1990 ई0 में घुड़सवारी तथा अन्तराष्ट्रीय पेनल के जज, कोच तथा ओब्जर्वर के रूप में इग्लैण्ड इटली, स्विटजरलेण्ड तथा
आस्ट्रिया की यात्रा की । भारतीय घुड़सवारी टीम के कोच तथा मैंनेजर के रूप में जापान, हांगकांग की 1991 ई0 में तथा बैंगकांक की 1996 ई0 में यात्राएं की थी ।
श्री नटनागर शोध संस्थान, सीतामऊ के अध्यक्ष के रूप में उपलबिधयाँ निम्न हैं
जैसाकि पूर्व विदित है कि कृष्णसिंहजी राठौर महाराजकुमार डा0 रघुबीरसिंहजी की ज्येष्ठ संतान थे । डा0 रघुबीरसिंहजी के पिता राजा रामसिंहजी का निधन 25 मई,
1967 ई0 को हुआ । पिताजी की मृत्यु के पश्चात् ज्येष्ठ पुत्र ही राजगद्दी का उत्तराधिकारी होता है, ऐसा सामान्य नियम है । परंतु डा0 रघुबीरसिंह तो साहित्य एवं
इतिहास के अनुरागी थे उन्होंने राजगद्दी पर बैठने से मना कर दिया तब कृष्णसिंहजी राठौर सा0 सीतामऊ की राजगद्दी पर बैठे और सभी पारिवारिक जिम्मेदारियों
को बड़ी कुशलता से निभाया । 13 फरवरी, 1991 ई0 को महाराजकुमार डा0 रघुबीरसिंहजी का निधन हो गया तब उनके द्वारा स्थापित इतिहास के तीर्थस्थल श्री
नटनागर शोध संस्थान के अध्यक्ष का पद भी खाली हो गया । तब को श्री कृष्णसिंहजी राठौर ने संस्थान के अध्यक्ष पद को संभाला । इस पद पर रहते हुए उन्होंने
अपने पिता की आकांक्षाओं पर खरा उतरते हुए संस्थान को आगे बढ़ाने के प्रयासों में अपना अमूल्य सहयोग दिया । उनके अध्यक्ष एवं निर्देशन में संस्थान ने उपलबिधयाँ
अर्जित कीं ।
उन्होंने अपने निर्देशन में निम्न सेमिनारों का आयोजन किया
नवम्बर, 1991 ई0 को "पूर्व आधुनिक मध्यप्रदेश का राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक अध्ययन" विषय पर द्वि-दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया
था । साथ ही ”मालवा का सांस्कृतिक इतिहास“ विषय पर 24-12-1991 ई0 को परिसंवाद रखा गया । संगोष्ठी का उदघाटन महामहिम कुंवर मेहमूद अली खाँ राज्यपाल,
मध्यप्रदेश के कर-कमलों द्वारा किया गया तथा अध्यक्षता तत्कालीन गृहमंत्री माननीय श्री कैलाशजी चावला ने की थी । इस संगोष्ठी में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश,
बिहार, हरियाणा, पंजाब और दिल्ली आदि विभिन्न प्रान्तों के लगभग 150 विद्वानों ने भाग लिया था ।
फरवरी, 23-25, 1994 ई0 को त्रि-दिवसीय संगोष्ठी "मालवा का इतिहास" विषय पर तथा ”मंदसौर (दशपुर) के शैलचित्र“ विषय पर आयोजन किया गया ।
संगोष्ठी का उदघाटन इतिहासविद् प्रोफेसर हीरालाल गुप्त, ने किया तथा अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के पूर्व कुलपति प्रो. के.के. केमकर ने की ।
इस संगोष्ठी में 63 प्रतिनिधियों ने भाग लिया ।
मई 15-17, 1996 ई0 को "मध्यकालीन और उत्तर मध्यकालीन मालवा, गुजरात और राजस्थान का इतिहास विषय पर आयोजित की गयी । संगोष्ठी का उदघाटन
प्रोफेसर ए0आर0 अब्बासी, उप कुलपति, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इन्दौर ने किया । इसमें 60 विद्वानों ने भाग लिया । दिसम्बर 13-15, 1998 ई0 को "मध्यकालीन
राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के निर्णायक युद्ध" विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया था । उदघाटन सांसद डा0 लक्ष्मीनारायणजी पाण्डेय द्वारा किया
गया । इस संगोष्ठी में देश के विभिन्न प्रान्तों के 65 विद्वानों ने भाग लिया ।
नवम्बर 24-25, 2000 ई0 को "मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र एवम् उत्तर भारत की राजस्व व्यवस्था (16वीं से 19वीं शताब्दी तक)" विषय पर त्रि-दिवसीय
राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया । इस संगोष्ठी का उदघाटन माननीय श्री सुभाषकुमार सोजतिया, तत्कालीन लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण तथा जन संपर्क मंत्री,
मध्यप्रदेश शासन, ने किया । संगोष्ठी में विभिन्न प्रान्तों के लगभग 60 विद्वानों ने भाग लिया ।
जनवरी 10-12, 2003 ई0 को "भारत के दुर्ग (इतिहास में उनका सामरिक दांवपेच तथा व्यवहारिक भूमिका तथा उनका भविष्य” विषय पर त्रि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी
का आयोजन किया गया । संगोष्ठी का उदघाटन भारत के उप उच्चायुक्त डा. टी.सी.ए. राघवन ने किया । इस संगोष्ठी में राष्ट्र के विभिन्न प्रान्तों के लगभग 85 विद्वानों
ने भाग लिया ।
मार्च 11-12, 2006 ई0 को द्वि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी "भारत के आक्रामक एवं आक्रमण" विषय पर आयोजित की गयी । संगोष्ठी का उदघाटन माननीय डा0
लक्ष्मीनारायणजी पाण्डेय, सांसद ने किया। इस संगोष्ठी में देश के विभिन्न प्रान्तों के लगभग 60 विद्वानों ने भाग लिया ।
2007 ई0 में एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन श्री नटनागर शोध संस्थान सीतामऊ में 1857 पर किया । फरवरी 23-26, 2008 ई0 को राजनिवास गढ़ लदूना में
महाराजकुमार डा0 रघुबीरसिंहजी जन्म शताब्दी समारोह के अवसर पर चार दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें महाराजकुमार डा0 रघुबीरसिंहजी के
व्यक्तित्व, कृतित्व, 1857 की क्रांति तथा इतिहास की शोध पद्धति पर विभिन्न विद्वानों ने अपने शोध पत्रों का वाचन किया । इस संगोष्ठी में 106
विद्वानों ने भाग लिया ।